Story of Ramakrishna’s Enlightenment, Kali Maa & Totapuri

रामकृष्ण समाधि कि कहानी, काली माँ और तोतापुरी

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रामकृष्ण को ऐसा हुआ था। वे काली के ऊपर ध्यान करते थे, धारणा करते थे। फिर धीरे-धीरे उनको ऐसा हुआ कि काली के उनको साक्षात होने लगे अंतस में। आंख बंद करके वह मूर्ति सजीव हो जाती। वे बड़े रसमुग्ध हो गए, बड़े आनंद में रहने लगे। फिर वहां एक तोतापुरी संन्यासी का आना हुआ। और उस संन्यासी ने कहा कि ‘तुम यह जो कर रहे हो, यह केवल कल्पना है, यह सब इमेजिनेशन है। यह परमात्मा का साक्षात नहीं है।’ रामकृष्ण ने कहा, ‘परमात्मा का साक्षात नहीं है? मुझे साक्षात होता है काली का।’ उस संन्यासी ने कहा, ‘काली का साक्षात परमात्मा का नहीं है।’

किसी को काली का होता है, किसी को क्राइस्ट का होता है, किसी को कृष्ण का होता है। ये सब मन की ही कल्पनाएं हैं। परमात्मा के साक्षात का कोई रूप नहीं है। और परमात्मा का कोई चेहरा नहीं है, और परमात्मा का कोई ढंग नहीं है, और कोई आकार नहीं है। जिस क्षण चेतना निराकार में पहुंचती है, उस क्षण वह परमात्मा में पहुंचती है।

परमात्मा का साक्षात नहीं होता है, परमात्मा से सम्मिलन होता है। आमने-सामने कोई खड़ा नहीं होता कि इस तरफ आप खड़े हैं, उस तरफ परमात्मा खड़े हुए हैं! एक घड़ी आती है कि आप लीन हो जाते हैं समस्त सत्ता के बीच, जैसे बूंद सागर में गिर जाए। और उस घड़ी में जो अनुभव होता है, वह अनुभव परमात्मा का है।

परमात्मा का साक्षात या दर्शन नहीं होता। परमात्मा के मिलन की एक अनुभूति होती है, जैसे बूंद को सागर में गिरते वक्त अगर हो, तो होगी।

तो उस संन्यासी ने कहा, ‘यह तो भूल है। यह तो कल्पना है।’ और उसने रामकृष्ण से कहा कि ‘अपने भीतर जिस भांति इस मूर्ति को आपने खड़ा किया है, उसी भांति इसको दो टुकड़े कर दें। एक कल्पना की तलवार उठाएं और मूर्ति के दो टुकड़े कर दें।’

रामकृष्ण बोले, ‘तलवार! वहां कैसे तलवार उठाऊंगा?’ उस संन्यासी ने कहा, ‘जिस भांति मूर्ति को बनाया, वह भी एक धारणा है। तलवार की भी धारणा करें और तोड़ दें। कल्पना से कल्पना खंडित हो जाए। जब मूर्ति गिर जाएगी और कुछ शेष न रह जाएगा–जगत तो विलीन हो गया है, अब एक मूर्ति रह गयी है, उसको भी तोड़ दें–जब खाली जगह रह जाएगी, तो परमात्मा का साक्षात होगा।’ उसने कहा, ‘जिसको आप परमात्मा समझे हैं, वह परमात्मा नहीं है। परमात्मा को पाने में लास्ट हिंड्रेंस, वह आखिरी अवरोध है, उसको और गिरा दें।’

रामकृष्ण को बड़ा कठिन पड़ा। जिसको इतने प्रेम से संवारा, जिस मूर्ति को वर्षों साधा, जो मूर्ति बड़ी मुश्किल से जीवित मालूम होने लगी, उसको तोड़ना! वे बार-बार आंख बंद करते और वापस लौट आते और वे कहते कि ‘यह कुकृत्य मुझसे नहीं हो सकेगा!’ उस संन्यासी ने कहा, ‘नहीं हो सकेगा, तो परमात्मा का सान्निध्य नहीं होगा।’ उस संन्यासी ने कहा, ‘परमात्मा से तुम्हारा प्रेम थोड़ा कम है। एक मूर्ति को तुम परमात्मा के लिए हटाने के लिए राजी नहीं हो!’ उसने कहा, ‘परमात्मा से तुम्हारा प्रेम थोड़ा कम है। एक मूर्ति को तुम परमात्मा के लिए हटाने को राजी नहीं हो!’

हमारा भी परमात्मा से प्रेम बहुत कम है। हम भी बीच में मूर्तियां लिए हुए हैं, और संप्रदाय लिए हुए हैं, और ग्रंथ लिए हुए हैं। और कोई उनको हटाने को राजी नहीं है।

उसने कहा कि ‘तुम बैठो ध्यान में और मैं तुम्हारे माथे को कांच से काट दूंगा। और जब तुम्हें भीतर लगे कि मैं तुम्हारे माथे को कांच से काट रहा हूं, एक हिम्मत करना और दो टुकड़े कर देना।’ रामकृष्ण ने वह हिम्मत की और जब उनकी हिम्मत पूरी हुई, उन्होंने मूर्ति के दो टुकड़े कर दिए। तो लौट कर उन्होंने कहा, ‘आज पहली दफा समाधि उपलब्ध हुई। आज पहली दफा जाना कि सत्य क्या है। आज पहली दफे कल्पना से मुक्त हुए और सत्य में प्रविष्ट हुए।’

तो इसलिए मैं किसी कल्पना करने को नहीं कह रहा हूं। कल्पना का मतलब यह, किसी ऐसी कल्पना को करने को नहीं कह रहा हूं, जो कि बाधा हो जाए। और जो थोड़ी सी बातें मैंने कही हैं–जैसे चक्रों की, जैसे श्वास की–इनसे कोई बाधाएं नहीं, क्योंकि इनसे कोई प्रेम पैदा नहीं होता। और इनसे कोई मतलब नहीं है। ये केवल कृत्रिम उपाय हैं, जिनके माध्यम से भीतर प्रवेश हो जाएगा। और ये बाधाएं नहीं हो सकते हैं।

https://www.youtube.com/watch?v=dVuhBUqH7LQ
Sadhguru :- Story of Ramakrishna’s Enlightenment, Kali Maa & Totapuri