जीवन है रहस्य (Mystery)।
उसे जीया जा सकता है।
और, जीकर जाना भी जा सकता है।
लेकिन, गणित के सवालों की भांति उसे हल नहीं किया जा सकता है।
वह सवाल नहीं है – वह है एक चुनौती (Challenge)।
वह प्रश्न नहीं है – वह है एक अभियान (Adventure)।
इसलिए, जो जीवन के संबंध में मात्र प्रश्न ही पूछते रहते हैं,
वे उत्तर से सदा के लिए अपने ही हाथों वंचित रह जाते हैं।
या कि ऐसे उत्तर पा लेते हैं, जो कि उत्तर नहीं हैं।
शास्त्रों से ऐसे ही उत्तर मिल जाते हैं।
असल में दूसरे से मिला उत्तर, उत्तर नहीं हो सकता है।
क्योंकि, जीवन-सत्य उधार नहीं मिलता है।
या फिर मात्र प्रश्न पूछने वाले अपने ही उत्तर गढ़ लेते हैं।
ऐसे उन्हें सांत्वना (Consolation) तो मिल जाती है,
लेकिन समाधान नहीं मिलता है।
क्योंकि, गढ़े हुए उत्तर उत्तर ही नहीं हैं।
उत्तर तो केवल जाने हुए उत्तर ही हो सकते हैं।
इसलिए कहता हूं: पूछो नहीं–जीओ और जानो ।
दर्शन (Philosophy) और धर्म ( Religion) का यही भेद है।
दर्शन पूछना है और धर्म जीना है।
और, मजा तो यह है कि
दर्शन पूछता जरूर है, लेकिन उत्तर कभी नहीं पाता है
और
धर्म पूछता बिलकुल नहीं है और फिर भी उत्तर पा लेता है।